
क्या हम हर बार अपनी बनाई हुई प्राथमिकताओं के साथ न्याय कर पाते हैं? क्या हम हमेशा ऐसा कर पाते हैं कि चीजों और कामों की वरीयता का क्रम मतलब प्रेफरेंस ऑर्डर, जो हमने निर्धारित किया है या जो टाइमलाइन हमने अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए सेट की है उन्हें 100% निभा पाएं? इसका जवाब होगा “हाँ”, अगर यह कोई कहानी हो या फिर कोई आइडियल पैरलल यूनिवर्स | क्योंकि जहां तक मैंने इसे समझा है, तो इस सामान्य, वास्तविक और वैज्ञानिक जीवन में यह बेहद मुश्किल या यूं कहें कि लगभग नामुमकिन है | हो सकता है, मेरे इस कथन से सब लोग इत्तेफ़ाक़ ना रखें लेकिन ज़रा अपनी लाइफ का एक हफ्ता रिमाइंड करके सोचिए; आपको ऐसी काफी सारी वजहैं, इवेंट्स के रूप में याद आ जाएंगी जो आपको मेरी इस बात को अन-मने मन से ही सही मगर मान जाने की ओर धक्का दे रही होंगी | हां मगर रिमाइंड करते हुए आपको यह ध्यान रखना होगा कि आप इसके प्रति पूरी तरह से ईमानदार और सजग हों | इस दौरान “इतना तो चलता है” वाला एटीट्यूड बिल्कुल भी नहीं चलेगा, बल्कि यह काम को बिगाड़ देगा
पिछले रविवार मेरा मन था कि पूरा हफ्ता काम को दे देने के बाद, अब परिवार के साथ कुछ वक्त बिताया जाए; तो मैंने सब चीजों को किनारे करते हुए परिवार के साथ वक्त बिताने को अपनी उस समय की प्राथमिकता बनाया | मगर मेरे एक करीबी दोस्त ने मुझे उसकी शादी के सिलसिले में एक बेहद जरूरी काम की जिम्मेदारी सौंप दी | अब वन्स-इन-अ-लाइफ वाले इस इवेंट के लिए दोस्त को मना करना भी अच्छा नहीं लगता; सो प्राथमिकता के साथ वही हुआ, जो अब तक होता आया था | मेरा तो हर दिन, हर हफ्ता अपनी प्राथमिकताओं को, प्राथमिकता देने और ना देने के बीच मचे घमासान के बीच फंस कर ही खत्म हो जाता है | बहरहाल, सवाल तो पता है; मगर जवाब क्या है?
जितना मैंने इसे समझा है, तो काम और समय के इस म्यूच्यूअल रिलेशनशिप से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं की जड़ है “प्रोक्रेस्टिनेशन” मतलब दीर्घ-सूत्रता | बड़ा ही भयंकर और क्लिष्ट शब्द है | प्रोक्रेस्टिनेशन का इलाज ढूंढने से पहले हमें समझना होगा कि प्रोक्रेस्टिनेशन क्या होता है?
भारतीय संस्कृति के धार्मिक महाकाव्य महाभारत में कुल 18 पुस्तकें सम्मिलित हैं; इसकी पांचवी पुस्तक का नाम है ‘उद्योग पर्व’ | इसके 197 अध्यायों में से 33 वें के 78 में श्लोक में कहा गया है,
षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
मतलब कि जो कोई भी संपन्न होना चाहता है तो उसे इन 6 चीजों से दूर रहना चाहिए; नींद, थकान, डर, गुस्सा, आलस और दीर्घ-सूत्रता |
कुरान में भी सुरा-अल-फ़ातिहा 1:5, सुरा-अल-असर 103:1 से 3 और सुरा-अल-बीर में भी समय की बात कही गयी है| अबु-बरज़ाह-अल-असल्लम ने फ़रमाया है कि,
वक़्त की एहमियत को न समझने वाले का ईमान कच्चा होता है ॥
सुरा 4, आयत 142 में अल्लाह ने कहा है,
टालमटोल और आलस्य पाखंडियों (मुनाफिक़ों) की बुरी आदतें हैं।
मुनाफिक,जब वे सलाह (प्रार्थना) के लिए खड़े होते हैं,
तो वे आलस्य के साथ खड़े होते हैं।
खैर हमें धर्म और शास्त्रों में नहीं जाना है | गौरतलब यह है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, आलस और भी ना जाने क्या-क्या हजारों सैकड़ों बार सुना है, मगर यह टालमटोल क्या बला है? इसका जिक्र तो कोई नहीं करता | दरअसल टालमटोल की आदत काफी अंडररेटेड टाइप है, जबकि असली दोषी यही है | कैसे ?
इसे आप फिर से खुद से जोड़ करके देखें; क्या आप अपने काम, अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हैं? क्या आपको अपनी जिंदगी के प्रति कोई फ़िक्रमंदी नहीं है? आपका जवाब “हां” ही होगा, मगर ऐसा दिखाई तो नहीं देता | क्या आप हद से ज्यादा आलसी हैं? 60 से 70 प्रतिशत लोगों का जवाब होगा “नहीं” लेकिन फिर भी शो तो यही होता है | अक्सर देर रात तक जाकर अपनी नींद को सैक्रिफाइस करने वाला, भला आलसी कैसे हो सकता है | थोड़ा बहुत आलस तो हम सभी में होता है, मगर उसकी वजह से हमारी जिंदगी पर इतना भारी असर हो सकता है, कि हमारे पूरे लाइफ गोल्स हमसे पीछे छूट जाएं ! वास्तव में यह आलस और लापरवाही का एक केमिकल मिक्सचर है, वह भी ‘हाई-कंसंट्रेशन’ के साथ | दरअसल हम किसी काम के प्रति कितने भी सजग और जागरूक क्यों ना हो, अगर हम उसे जिस समय करना चाहिए, उस समय से एक पल भी आगे सरका देते हैं या सिंपली, टाल देते हैं; तो वह बन जाता है ‘प्रोक्रेस्टिनेशन’ और यह सिर्फ एक छोटी सी आदत भर बनकर नहीं रह जाता, यह एक भयंकर बीमारी का रूप ले लेता है, और हमें इसका पता भी नहीं चलता | फिर धीरे-धीरे हम हर काम को टालने लगते हैं |
द पावर ऑफ हैबिट के लेखक ‘चार्ल्स द्युहिग’ के मुताबिक, यह एक आदत का फंदा है जो कि काम आते ही सक्रिय हो जाता है | दिमाग का एक हिस्सा होता है ‘बैसल गैंगलिया’, इसी हिस्से में हमारी आदतों का कंप्यूटर कोड यानी एल्गोरिदम लिखी और सुरक्षित होती है | शोध और अनुसंधानों के अनुसार कोई भी आदत 3 मूलभूत चीजों से मिलकर बनती और इनैक्ट होती है,
इशारा — नियमित क्रिया — इनाम
कोई भी आदत इनैक्ट (pradarshit) होने के लिए दरअसल उस इनाम का इंतजार दिमाग में पैदा करती है; इनाम मिलने के बाद दिमाग को एक संतुष्टि मिलती है, और दिमाग इसको बार-बार करना चाहता है | प्रोक्रेस्टिनेशन के सिलसिले में “काम का मिलना” इशारा है, उसे “टालना” नियमित क्रिया और टालकर मिलने वाला “क्षण भर का आराम” इसका इनाम है | यहां पर एक चीज और ध्यान देने वाली हैं, जो है ‘इनर्शिया’ यानी ‘जड़त्व’ | सर आइज़क न्यूटन के अनुसार गति और स्थिति दोनों को ही बदलने के लिए बाहरी बल, मतलब एक्सटर्नल फोर्स की जरूरत पड़ती है, तो मतलब चाहे आप खाली बैठे हो मतलब आप रेस्ट में हो या कोई काम कर रहे हो मतलब मोशन में हो, दोनों ही स्थिति में प्रोक्रेस्टिनेट करके आपका दिमाग इनर्शिया (मानसिक जड़त्व) को मेंटेन कर लेता है| मतलब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप खाली हैं, या इंगेज्ड हैं; अगर आप इस आदत के फंदे में हैं, तो आप प्रोक्रेस्टिनेट करेंगे ही करेंगे, क्योंकि वही इशारे की नियमित क्रिया है | तो फिर आदत केस वंदे यानी प्रोक्रेस्टिनेट करने से बचने का उपाय क्या है?
हमारी आज के लगभग लगभग 80% युवा, जिसे हम कंप्यूटर युग की पीढ़ी कहते हैं, प्रोक्रेस्टिनेशन की इस बीमारी के शिकार हैं; और मजे की बात यह है कि उनको पता भी नहीं है | इसका परिणाम होता यह है कि काम का ढेर महीने या साल के अंत में इतना बड़ा हो जाता है कि उसे देखकर हम लोग डिप्रेस्ड हो जाते हैं कि इतना सारा काम अब किया तो कैसे किया जाए | खैर अगले अंक में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि प्रोक्रेस्टिनेशन की इस आदत से निजात कैसे पाया जाए!